Importance of Tilak (Teeka)
- हिन्दू संस्कृति में बिना तिलक के कोई भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजन आदि पूर्ण नहीं माना जाता है । जन्म से लेकर मृत्युशय्या तक तिलक का प्रयोग किया जाता है तिलक लगाना सम्मान का सूचक भी माना जाता है । अतिथियों को स्वागत में तथा विदाई के समय तिलक करने की परम्परा भी है । सफलता हेतु और सूझबूझ प्रकट करने के लिए तिलक लगाने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है । ब्रह्मवैवर्त पुराण (ब्रह्म खंड : २६.७३) में कहा गया है :
- स्नानं दानं तपो होमो देवता पितृकर्म च । तत्सर्वं निष्फलं याति ललाटे तिलकं विना ।।
अर्थात् स्नान, दान, तप, होम तथा देव व पितृ कर्म करते समय यदि तिलक न लगा हो तो ये सब कार्य निष्फल हो जाते हैं ।
- उल्लेखनीय है कि ललाट पर दोनों भौंहों के बीच विचारशक्ति का केन्द्र है । योगी इसे आज्ञाचक्र कहते हैं । इसे शिवनेत्र अर्थात् कल्याणकारी विचारों का केन्द्र भी कहा जाता है। इसके नजदीक दो महत्त्वपूर्ण अंतःस्रावी ग्रंथियाँ स्थित हैं : (1) पीनियल ग्रंथि और (2) पीयूष ग्रंथि । दोनों भौंहों के बीच चंदन अथवा सिंदूर आदि का तिलक लगाने से उपरोक्त दोनों ग्रंथियों का पोषण होता है और विचारशक्ति एवं आज्ञाशक्ति का विकास होता है ।
- अधिकांश स्त्रियों का मन स्वाधिष्ठान एवं मणिपुर केन्द्र में रहता है । इन केन्द्रों में भय, भाव और कल्पना की अधिकता होती है । हमारी माताएँ-बहनें भावनाओं एवं कल्पनाओं में बह न जायें, उनका शिवनेत्र, विचारशक्ति का केन्द्रविकसित हो और उनकी समझ बढ़े – इस उद्देश्य से ऋषियों ने महिलाओं हेतु बिंदी या तिलक लगाने की परम्परा शुरू की । परंतु आज महिलाएँ इस कल्याणकारी परम्परा के पीछे छिपे उद्देश्य को नहीं समझती हैं और ऐसी बिंदियाँ लगाती हैं जो हानिकारक हैं ।
Importance of Tilak [Tilak Ke Fayde, Mahatva]
Benefits of Tilak [Chandan Sindur Kyu Lagaya Jata hai]
- पूज्य बापूजी के सत्संग में यह बात आती रहती है कि “आजकल भाइयों के साथ अन्याय हो रहा है । छठा केन्द्र (आज्ञाचक्र) विकसित हो इसलिए तिलक करते हैं । इससे तेज, शोभा, प्रसन्नता, बल, उत्साह बढ़ता है। । लेकिन उसकी जगह पर उत्साह, बल, तेज को दबानेवाला, मृत पशुओं के अंगों से बनाया हुआ घोल बिंदी चिपकाने के लिए लगा देते हैं । तेज बढ़ाने की जगह पर तेज को कुंठित कर देना… यह कैसा है ! जो प्लास्टिक की बिंदी नहीं लगाने का वचन देती हैं और बाजारू क्रीम नहीं लगाने का वचन देते हैं, वे हाथ ऊपर करें तो मैं समझूँगा । कि मेरे को दक्षिणा मिल गयी ।”
- कठोपनिषद् के अनुसार हृदय की नाड़ियों में । से सुषुम्ना नामक नाड़ी मस्तक के सामनेवाले हिस्से की ओर निकलती है । इस नाड़ी से ऊर्ध्वगतीय मोक्षमार्ग निकलता है । अन्य सभी नाड़ियाँ चारों दिशाओं में फैली हुई हैं परंतु सुषुम्ना का मार्ग ऊर्ध्व दिशा की ओर ही रहता है ।
- इस सुषुम्ना नाड़ी को केन्द्रीभूत मानकर अपने-अपने सम्प्रदायों के अनुसार लोग ललाट पर विविध प्रकार के तिलक धारण करते हैं । चंदन का लेप सुषुम्ना पर लगाने से अध्यात्म के लिए अनुकूल विशिष्ट प्रक्रिया होती है ।
- नासिका से प्रवाहित होनेवाली दो नाड़ियों में से बायीं नाड़ी इड़ा ‘ऋण’ (Negative) और दायीं नाड़ी पिंगला ‘धन’ (Positive) होती है । धन विद्युत बहते समय उत्पन्न उष्णता को रोकने के लिए सुषुम्ना पर तिलक लगाना बहुत उपयोगी रहता है
- में स्कंद पुराण आता है :
अनामिका शान्तिदा प्रोक्ता मध्यमाऽऽयुष्करी भवेत् । अङ्गुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्तस्तर्जनी मोक्षदायिनी ।।
अनामिका से तिलक करने से शांति, मध्यमा से आयु, अँगूठे से स्वास्थ्य और तर्जनी से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
- ध्यान दें : सोते समय ललाट से तिलक का त्याग कर देना चाहिए ।