Surya Namaskar Mantra in Hindi
- सूर्योदय से पहले स्नानादि करके तैयार हो जायें । फिर सूर्य का प्रकाश ठीक प्रकार से आता हो वहाँ नाभि का भाग खुला करके सूर्यदेव के सामने खड़े रहें । तदनन्तर सूर्यदेव को प्रणाम कर, आँखें बंद करके चिन्तन करें : ‘जो सूर्य का आत्मा है वही मेरा आत्मा है । तत्त्वदृष्टि से दोनों की शक्ति समान है ।’ फिर आँखें खोलकर नाभि पर सूर्य के नीलवर्ण का आवाहन करें और निम्न मंत्र बोलें :
- ॐ मित्राय नमः ।
- ॐ रवये नमः ।
- ॐ सूर्याय नमः ।
- ॐ भानवे नमः ।
- ॐ खगाय नमः ।
- ॐ पूष्णे नमः ।
- ॐ हिरण्यगर्भाय नमः ।
- ॐ मरीचये नमः ।
- ॐ आदित्याय नमः ।
- ॐ सवित्रे नमः ।
- ॐ अर्काय नमः ।
- ॐ भास्कराय नमः ।
- ॐ श्रीसवितृ-सूर्यनारायणाय नमः ।
Surya ko Arghya Dene ki Vidhi Aur Labh
- प्रातःकाल ताँबे के लोटे में (या जो भी पात्र उपलब्ध हो उसमें) शुद्ध जल भर लें। भगवान सूर्य के सामने खड़े होकर दोनों हाथों से लोटे को ऊँचा उठाकर अर्घ्य दें ।
- अर्घ्य के जल में (विशेषतः रविवार को) लाल पुष्प, कुमकुम, अक्षत डालने से विशेष लाभ होता है। सूर्य को अर्घ्य देने हेतु निम्न में से कोई एक या सभी मंत्र बोलें :
- एहि सूर्य ! सहस्रांशो ! तेजोराशे ! जगत्पते !
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर !
‘हे सहस्रांशो ! हे तेजोराशे ! जगत्पते ! मुझ पर अनुकम्पा करें । भक्तिपूर्वक दिये गये इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिये । आपको नमस्कार है ।’ - ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि ।
तन्नो भानुः प्रचोदयात् । (सूर्य गायत्री मंत्र) - ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥ (गायत्री मंत्र )
- अर्घ्य देने के बाद नीचे गिरे हुए जल को दाहिने हाथ से स्पर्श कर उसे मस्तक और आँखों पर लगायें । अर्घ्य के समय लोटे में थोड़ा-सा जल बचाकर रखें व उसका निम्न मंत्र से आचमन ले लें ।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्
सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम् ।।
- उपरोक्त विधि से जब भगवान सूर्य को जल अर्पण किया जाता है, तब जल की धारा को पार करती हुई सूर्य की सप्तरंगी किरणें हमारे सिर से पैर तक पड़ती हैं । जो शरीर के सभी भागों को प्रभावित करती हैं । इस क्रिया से हमें स्वतः ही सूर्यकिरणयुक्त जल-चिकित्सा का लाभ मिलता है। इससे अजीर्ण दूर होता है, विकृत गैसें शरीर को प्रभावित नहीं करतीं व शरीर स्वस्थ बना रहता है ।
- सूर्य बुद्धिशक्ति के स्वामी हैं । उन्हें अर्घ्य देने से बौद्धिक शक्ति में चमत्कारिक लाभ होता है । नेत्रज्योति व ओज-तेज में भी वृद्धि होती है ।
Surya Naman Hetu Mantra
- जैसे भगवान विष्णु को स्तुति प्रिय है, वैसे ही सूर्यनारायण को नमस्कार बहुत प्रिय है । अतः निम्नलिखित मंत्रों में से जो अनुकूल पड़े उससे या सभी मंत्रों से सूर्यदेव को नमन करें ।
- ॐ आरोग्यप्रदायकाय सूर्याय नमः ।
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः ।
- ॐ सूर्याय नमः, ॐ भास्कराय नमः, ॐ आदित्याय नमः ।
- ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः ।
- ॐ घृणिः सूर्यः आदित्योम् ।
- ॐ घृणिः सूर्याय नमः ।
- आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर । दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ॥
‘हे आदिदेव सूर्यनारायण ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ । हे प्रकाश प्रदान करनेवाले देव ! आप मुझ पर प्रसन्न हों । हे दिवाकर देव ! मैं आपको नमस्कार करता हूँ.। हे तेजोमय देव ! आपको मेरा नमस्कार है ।’
Surya Dhyan Mantra
ध्येयः सदा सवितृमण्डलमध्यवर्तीनारायणः सरसिजासनसन्निविष्टः ।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटीहारी हिरण्मयवपुर्धृतशंखचक्रः ॥
‘सवितृमण्डल के भीतर रहनेवाले, पद्मासन में बैठे हुए, केयूर, मकर कुण्डल, किरीटतथा शंख-चक्र धारी, हार पहने हुए स्वर्ण के सदृश देदीप्यमान शरीरा भगवान नारायण का सदा ध्यान करना चाहिए ।’
Surya Namaskar Mantra in English Font
- Om Mitraya Namah
- Om Ravaye Namah
- Om Suryaya Namah
- Om Bhanave Namah
- Om Khagaya Namah
- Om Pushne Namah
- Om Hiranyagarbhaya Namah
- Om Marichaye Namah
- Om Adityaya Namah
- Om Savitre Namah11. Om Arkaya Namah
- Om Bhaskaraya Namah
- Om Shri Savitrasuryanarayanay Namah
How to Remember Surya Namaskar Mantra ?
Benefits Of Surya Upasana
यादशक्ति, निर्णयशक्ति, पाचनशक्ति बढ़ती है ।
सर्दी, खाँसी, श्वास जैसे रोग, जो वायु और कफ के कारण होते हैं, वे दूर हो जाते हैं। शीत प्रकृतिवालों को सदैव सूर्योपासना करनी चाहिए । मासिक स्राव के दिनों में तथा सगर्भावस्था में महिलाएँ सूर्योपासना न करें । गर्मियों में आठ बजे तक, वर्षा ऋतु में जब सूर्यदेव के दर्शन हों तब तथा अन्य ऋतुओं में नौ बजे तक पूजा कर लेनी चाहिए ।
नाभि पर सूर्य की किरणों का आवाहन करने से मणिपुर चक्र का विकास होता है, जिससे बुद्धि विकसित और जठराग्नि प्रदीप्त होती है । जो व्यक्ति सदा सर्दी व खाँसी से पीड़ित रहता हो, जिसकी शीत प्रकृति हो, भोजन ठीक से पचता न हो उसे विशेषरूप से अपनी नाभि पर सूर्य के नीलवर्ण का आवाहन करके सूर्योपासना करनी चाहिए । आज्ञाचक्र पर सूर्य की किरणों का आवाहन करने से भी बुद्धि का विकास होता है । इन सभी मंत्रों में जो विशेष प्रिय व सरल लगे उसे जप सकते हैं ।