Yajna [Yagya/ Yagna] Meaning, Importance & Benefits in Hindi : वेदों की अपूर्व देन है – यज्ञ । किसी समय ‘स्वर्गकामो यजेत्’ – इस वेदोक्ति के आधार पर स्वर्ग की कामना के लिए यज्ञ किये जाते थे आज विज्ञान ने पृथ्वी एवं अंतरिक्ष के आश्रय से अनेक सुख-साधनों का विस्तार तो किया है, परंतु उसकी प्रतिक्रिया के रूप में अनेक नारकीय दुःखों और विपदाओं की कृद्धि भी चक्रवृद्धि ब्याज के रूप में स्वभावतः व्याप्त हो रही है। ऐसी स्थिति में विदेशों में यज्ञ के प्रति कुछ आकर्षण उत्पन्न हुआ और यज्ञ का प्रयोगात्मक अनुसंधान-कार्य अमेरिका व जर्मनी में तथा यूरोप के अन्य राष्ट्रों में प्रारम्भ हुआ । परिणामस्वरूप यज्ञ की उपयोगिता उत्तरोत्तर उन्हें ज्ञात होने लगी ।
यज्ञ पर अनुसंधान :
आज देश-विदेश में कतिपय संस्थाएँ कृषि, रोगों के निवारण, पर्यावरण-शोधन तथा भूमि को उर्वर बनाने हेतु कृत्रिम खाद के बजाय यज्ञ के धुएँ व भस्म का प्रयोग कर फसलों पर अनुसंधान करके तथा वेदमंत्रों की ध्वनि से फसलों की उत्पत्ति में 10 से 20 प्रतिशत वृद्धि व कहीं तो कई गुना अधिक लाभ अनुभव कर रही हैं । इनमें ‘फाइव फील्ड पाथ, वॉशिंगटन’ की शाखाएँ, ‘न्यूवे आश्रम, लोनावाला’, ‘सत्यधर्म प्रचार माध्वाश्रम, भोपाल’ आदि संस्थाएँ यज्ञ की व्यावहारिक उपयोगिता का अनुसंधान कर रही हैं, जिसके बहुत सकारात्मक परिणाम रहे हैं । वैदिक संस्कृति में यज्ञ का विराट महत्त्व है । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचन्द्रजी व भगवान श्रीकृष्ण ने भी यज्ञीय परम्पराओं का पालन किया था । ‘शतपथ ब्राह्मण’ के ऋषि के अनुसार, ‘यज्ञ सबसे श्रेष्ठ कर्म, दान और परोपकार है ।
‘मनुस्मृति’ के अनुसार अग्नि में डाली हुई आहुति सूर्यलोक तक जाती है । यजमान को यज्ञ का कई गुना फल मिलता है और यजमान पर ईश्वर सर्वाधिक प्रसन्न होते हैं । यज्ञ से वायु, जल, पृथ्वी आदि का प्रदूषण नहीं होता तथा बाढ़, सूखा, भूकम्प, भीषण गर्मी, भूस्खलन आदि दैवी प्रकोप नहीं आते । इससे पसीने की बदबू, मलमूत्र की दुर्गन्ध, मिरगी, गंडमाला, गर्भ-दोष आदि का निवारण होता है । वेदमंत्रों के हवन में एक सेकंड में एक लाख दस हजार तरगे उत्पन्न होती हैं, जिनसे अंतरिक्ष व मानव के अंग स्पंदित होते हैं और मनुष्य स्वस्थ रहता है। यज्ञज्योति के चुम्बकीय आकर्षण से अंदरूनी अंगों के रंग गहरे होने लगते हैं । दिनांक 2-3 दिसम्बर 1984 की रात्रि को एक अध्यापक ने लगभग डेढ़ बजे अपनी पत्नी को वमन करते पाया, शीघ्र ही उनके बच्चों को घुटन, आँखों में जलन, सीने में दर्द और खाँसी उत्पन्न हो गयी । जब उन्होंने अपने घर से बाहर झाँककर देखा तो उन्हें लोग घबराहट में भागते हुए दिखे, उनलोगों में से किसी एक ने श्री कुशवाह से कहा कि लगभग एक मील दूर ‘यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री’ में से गैस का रिसाव हो गया है । तभी श्रीमती क्रिवेणी ने सुझाव दिया किअब अग्निहोत्र प्रारम्भ कर दिया जाय और उन्होंने तत्काल अग्निहोत्र प्रारम्भ कर दिया । बीस मिनट के अंदर उस विषैली गैस के चिह्न समाप्त हो गये ।
Importance of Yagya (Yajna) in Ved
1. अयं यज्ञो भुवनस्य नाभिः ।
अर्थात् यह यज्ञ विश्व-शरीर का नाभि- रक्षण केन्द्र है। – यजुर्वेद
2. अयज्ञियो हतव चर्चा भवति । अर्थात् यज्ञ के बिना वर्चस्व नष्ट हो जाता है। – अथर्ववेद
3. ईजाना स्वर्ग यन्ति ।
अर्थात् यज्ञ करनेवाले सुख और समृद्धि की पराकाष्ठा प्राप्त कर लेते हैं। – अथर्ववेद
4. नौर्हवा स्वर्ग्या यदग्निहोत्रम् ।
अर्थात् यह अग्निहोत्र स्वर्ग की नौका है। – शतपथ ब्रह्मण
सभी समस्याओं का समाधान हमारे ऋषि-मुनियों ने यज्ञ में खोजा था । रामराज्य में खूब यज्ञ-याग किये जाते थे । यही कारण था कि रामराज्य में सुख-समृद्धि की सीमा नहीं थी । वह स्वर्णिम युग था । यदि आज भी हम नियमित रूप से हवन करने लगें तो प्रत्येक परिवार में सुख-समृद्धि आ जाय । वैदिक विधि-विधान से ही हवन के सम्पूर्ण लाभ मिल सकते हैं । सप्ताह में एक बार हवन अवश्य करना चाहिए । प्रारम्भ में वैदिक पुरोहित से हवन सीखकर स्वयं दक्ष बनना चाहिए ।
– अशोक शीलार्य